Tuesday, February 16, 2016

कालसर्प दोष

राहु कुछ रोचक तथ्य 

सिंहिका पुत्र राहु 


यदि हम पौराणिक कथाओ का अध्यन करते है तो जो जानकारिया मिलती है उसके अनुसार हिरण्यकश्यप की बहन सिंहिका का विवाह विप्रचिति नामक दानव से हुआ था जिनके पुत्र का नाम राहु थ। इस हिसाब से हिरण्यकश्यप राहु का मामा, होलिका राहु की मौसी और भक्त प्रहलाद राहु के मामा का लड़का था ।भागवत गीता में लिखा है की राहु के सौ और भाई थे, जिनमे से राहु सबसे बड़े थे । ब्रह्मा और इंद्रा की सभा में और ग्रहो के साथ साथ राहु का भी सम्मानजनक स्थान है । राहु ग्रह मंडलाकार है जो पृथ्वी की मंडलाकार छाया के गिर्द भ्रमण करता है । र्ऋग्वेद में लिखा है की एक दुश्मन की भांति राहु पूर्णिमा को चन्द्रमा और अमावस्या को सूर्य को ग्रहण लगा देता है । जन्मकुंडलियो के अध्यन  से एक बात पुख्ता तौर पर पता चलती है जिन जन्कुंडलियो में कालसर्प दोष होता है या जिनका चन्द्रमा अथवा सूर्य राहु से प्रभावित होता है ऐसे लोग बदलेखोर प्रवृति के होते है । ऐसे लोग अपना बदला लेना कभी नही भूलते ।पौराणिक कथाओ के अनुसार सिहिंका के गर्भ से एक इच्छाधारी नाग पैदा हुआ जो अपनी इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर लेता था । कहते है कि ये ज्यादातर नाग के रूप में ही रहता था लेकिन दैत्यकुल की जरूरत के अनुसार ये दैत्य का रूप धारण कर लेता था |जैसा कि आजकल के कुछ नए ज्योतिषी ये भ्रामक प्रचार कर रहे है कि कालसर्प दोष नाम का कोई योग ही नहीं होता । ये सर्वथा ज्ञान का अभाव है । ज्योतिष शास्त्रो का अध्यन करे तो पता चल जायेगा  कि न सिर्फ काल सर्प दोष का वर्णन है बल्कि इसके मार्क प्रभाव के बारे में भी विस्तार से बताया गया है ।

राहुत: केतुमध्ये  आगच्छन्ति यदा ग्रहा : ।
काल्सर्पस्तु योगोSयं कथितं पूर्वसूरिभि :


अर्थात राहु से केतु के मध्य में जब सभी ग्रह आ जाये तो कालसर्प दोष नामक योग का निर्माण होता है । ये मै नहीं हमारे मनीषियों ने उपरोक्त जैसे कई श्लोको में कहा है 
हा ये अवश्य है लोगो के अंदर इस योग को लेकर गलत अनावश्यक डर बिठाना सर्वथा अनुचित है ।



यहाँ एक और बात मै पाठको के बताना जरुरी समझता हु, जैसा कि आजकल एक चलन सा चल पड़ा है , जातक को कोई भी कष्ट हो , ज्योतिषी झट से बोल देते है कि आपकी जन्म कुंडली में कालसर्प दोष है । बगैर इस बात का विचार किये कि कुंडली में कालसर्प दोष बनाने वाले मुख्य ग्रह राहु का सम्बन्ध किस भाव, भावेश या ग्रह से है ।
संतान न हो तो कालसर्प दोष, विवाह में विलम्ब हो तो कालसर्प दोष, विदेश यात्रा में विघ्न आये तो कालसर्प दोष, ये एक आसान मार्ग है जन्म कुंडली का बगैर अध्यन किये किसी निर्णय पर जाना । मै ये नहीं कहता कि कालसर्प दोष उपरोक्त दोषो के लिए जिम्मेवार नही हो सकता । लेकिन हर दोष के लिए कालसर्पदोष ही जिम्मेदार हो ये कहना भी अनुचित है ।
उदाहरण के तौर पर यदि राहु का सम्बन्ध पंचम भाव, पंचमेश, या पंचम कारक गुरु से बन रहा हो, और संतान होने में विलम्ब हो रहा हो तब तो हम कह सकते है कि कालसर्प दोष के कारण ये हो रहा है । लेकिन यदि राहु का सम्बन्ध  पंचम भाव, पंचमेश, या पंचम कारक गुरु से  न बन रहा हो तब संतान होने में विलम्ब का कारण कालसर्प दोष नहीं कुछ और होगा जो अध्यन करने से पता लगेगा |  


कालसर्प दोष मुख्य रूप से पांच  प्रकार से काम करता है :

1.. पहला सीधे तौर पर ये किसी भाव, भावेश या कारक से सम्बन्ध बनाकर उसके शुभ फल का नाश कर देता है ।

2. दूसरा यदि किसी भाव का फल किसी अन्य ग्रह के कारण खराब हो रहा हो तो ये उस ग्रह से सम्बन्ध बनाकर उसकी मार्क क्षमता को बढ़ा देता है ।


3. तीसरा यदि किसी भाव का फल किसी अन्य ग्रह के कारण शुभ हो रहा हो तो ये उस ग्रह से सम्बन्ध बनाकर उस भाव के शुभ फल का नाश कर देता है| 


4. ये जन्म कुंडली के शुभ फल जिस मात्रा में मिलने चाहिए उसको न्यून यानि उनमे कमी कर देता है ।


5. अशुभ फलो में वृद्धि कर देता है ।


उपरोक्त पाँच बिन्दुओ से एक बात तो तय है कि यदि जन्म कुंडली में कालसर्प दोष का निर्माण हो रहा हो तो उसका निदान (उपाए) तो किया ही जाना चाहिए लेकिन इसके साथ यदि किसी खास कुयोग का निर्माण अन्य ग्रहो से हो रहा हो तो उसका निदान किये बगैर जातक को कष्ट से छुटकारा नही मिलता |  



राहु की एक और रोचक कथा 



समुद्र मंथन के समय जब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सर धड़ से अलग कर दिया था तो कटा हुआ सर दक्षिण भारत में मलयम नामक स्थान में जाकर गिरा था । वहा पर उस कटे हुए सर पर एकमिति नाम के ब्राह्मण की नज़र पड़ी । उस ब्राह्मण को उस पर दया आई और वो उसे उठाकर घर ले गया और उसकी देखभाल की । लेकिन देखते ही देखते वो सर छाया रूप होकर अदृश्य होने लगा । लेकिन अदृश्य होने से पहले उसने उस ब्राह्मण को कहा कि आपने मुझे संरक्षण में लेकर जो मानवता का परिचय दिया है मै उसके लिए आपका ऋणी हूँ और वचन देता हूँ कि किसी भी ब्राह्मण की जन्म कुंडली में चाहे कितना भी अनिष्ट योग क्यों न हो मैं ब्राह्मण कुल में जन्मे व्यक्ति को किसी किस्म की हानि नहीं पोहचाउंगा । उस ब्राह्मण ने मालयम में राहु का मंदिर बनवा दिया था जो कि आज भी है ।एकमिति के वशंज ही उस मंदिर के पुजारी चले आ रहे है ।

ब्राह्मण के बारे में एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इस विषय में जाती भ्रम पलने का कोई अर्थ नही है । इंसान किसी भी जाति धर्म का हो यदि उसके अंदर ब्रह्म ज्ञान है जन कल्याण की भावना है वही ब्राह्मण कहलाने का सही अधिकारी है । यदि कोई ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर तामसिक कर्म करे तो फिर राहु से किसी किस्म की रियात की उम्मीद करना नादानी है | 


contd........